राठौर वंश के राजाओं का अधिक लिखित वृतान्त न मिलने से यह इतिहास, अब तक के मिले इस वंश के दानपत्रों, शिलालेखों और बहियों आधार पर ही लिखा गया है, परन्तु इसमें उन संस्कृत, अरबी और अंग्रेजी पुस्तकों का, जिनमें इस वंश के नरेशों का थोडा बहुत वर्णन मिलता है, उपयोग भी किया गया है, जिसके आधार पर यह स्पष्ट होता है कि इस वंश के कुछ राजा अपने समय के प्रतापी नरेश थे और कुछ राजा विद्वानों के आश्रयदाता होंने के साथ ही स्वयं भी अच्छे विद्वान थे।
क्षत्रियों के इतिहास के पृष्ठ पलटने पर, राठौर कुल की उत्पत्ति, सूर्यवंश के श्री रामचंद्रजी के प्रथम पुत्र कन्नौज नगर के संस्थापक कुश से बताई जाती है। कुश के वंशजों ने श्रीरामचंद्रजी का अनुकरण करते हुए राज भोग किया था। फलतः तत्कालीन विद्धानों ने उन्हें ‘‘राष्ट्रवर'' की उपाधि से विभूषित किया।
यही राष्ट्रवर ‘‘राठौर‘‘ वंश का द्यौतक बन गया। ई.स.593 में दन्ति वर्मा राष्ट्रकूट वंश का राजा दक्षिण में राज करता था। पं. नारायणदास चतुर्वेदी ने इतिहास परिचय पुस्तक में लिखा है कि ई.स.754 में दन्ति वर्मा द्वितीय राठौर नरेश ने चालुक्य से राज्य छीनकर अपने बल वैभव का विस्तार किया। यह राज्य आंन्ध्र वंश से कलिंग और कलिंग से पल्लव तथा पल्लव से चालुक्य वंश ने छीना था, परन्तु राष्ट्रकूट अर्थात राठौरों ने चालुक्यों को परास्त करके अपनी विजय पताका फहराई।