पथ–प्रदर्शक
- डा. श्री नर्मदा प्रसाद राठौर– सन् 1900 में कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को जबलपुर में इनका जन्म हुआ। आप डाक्टर थे। आप में गरीबों का मुफ्त ईलाज करने से लेकर हर तरह की मदद करने की इच्छा रहती थी। धीरे-धीरे लोगों की आस्था भी इनके प्रति बढती गई। राठौरों को जागृत करना और संगठित करना इनका लक्ष्य रहता था, इसके लिये इन्होंने कई नगरों में भ्रमण किया और समाज को संगठित किया। आप ने ही सन् 1939 में झाँसी में राठौर समाज की बैठक आयोजित कर ’’ अखिल भारतीय राठौर क्षत्रिय महासभा ’’ का बीजारोपण किया। समाज ने इन्हें ”समाज भूषण ” से सम्मानित भी किया। सन् 1940 में इन्होंने त्रिपुरा काँग्रेस अधिवेशन में भी भाग लिया। आजाद हिन्द फौज के सैनानी श्री सुभाष चंन्द्र बोस के जबलपुर आगमन के समय इनके नेतृत्व में राठौरों ने बैंड पार्टी बनाकर उनका सम्मान किया। सन् 1941 में इनके नेतृत्व में बिलग्राम में अ.भा.राठौर क्षत्रिय महासभा का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में सभी राठौर क्षत्रियों को उठकर आगे बढने और संगठन को मजबूत बनाने का आव्हान किया गया एवं प्रचार प्रसार के लिये एक पत्रिका ”राठौर बंधु”निकाले जाने का प्रस्ताव भी मंजूर हुआ।
- श्री रामकृष्ण राठौर– चाम्पा विधानसभा के प्रथम विधायक रहे, इनका जन्म 1 सितम्बर 1908 को धाराशीव, जाँजगीर में कृषक परिवार मे हुआ। युवावस्था में सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में सक्रिय रहे, राष्ट्रप्रेम की भावना के चलते सन् 1942 में अंग्रेजों के विरूघ्द चलाये जा रहे, ’’भारत छोडो’’ आंदोलन में अहम् भूमिका निभाई। स्वतंत्र भारत में प्रथम विधानसभा आम चुनाव 1952 में, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के उम्मीद्वार के रूप में विजयी हुऐ। सन् 1956 में नवगठित मध्यप्रदेश राज्य के विधानसभा चुनाव में,उन्होंने जनसंघ के उम्मीद्वार को पराजित किया। विधायक होंने पर उन्होंने मजदूरों की दशा सुधारने, क्षेत्र की मूलभूत आवश्यकताओं को विकसित किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा जी के अच्छे साथी रहे। आपके पास आयुर्वेदरत्न की उपाधि थी। राठौर समाज के द्वारा इन्हें ’’राठौर रत्न’’ की उपाधि से विभुषित किया गया। 09 दिसम्बर 1983 को इनका देहावसान हुआ। वर्तमान में जाँजगीर, छत्तीसगढ में कचहरी चैक पर इनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की गयी है जिसका अनाावरण पूर्व मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह के द्वारा किया गया। श्री रामकृष्ण जी की यादों को चिरस्थायी बनाने के लिय, इनके नाम पर ही इस क्षेत्र के शास. पॉलिटेक्निकल कॉलेज का नामकरण किया गया है।
- श्री दुलीचंद राठौर- आप सन् 1964 से सन् 1970 एवं सन् 1978 से सन् 1985 तक महासभा के अध्यक्ष रहे। इनके नेतृत्व में आयोजित महासभा की बैठकों में संगठन के लिये ”एक विधान-एक निशान” पर जोर दिया गया। समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे अंधविश्वास, अशिक्षा, रूढिवादिता और बालविवाह आदि, को दूर करने के प्रयास प्रारंम्भ किये गये। फरवरी सन् 1968 में चित्तोड़ में आयोजित अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के हीरक जयंती समारोह में श्री दुलीचंद जी को आमंत्रित कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर इनके साथ उपस्थित रहे श्री अनोखे सिंह एवं श्री सत्यपाल जी को भी सम्मानित किया गया। जुलाई 1978 में ग्वालियर में आयोजित महासभा की बैठक श्री दुलीचंद जी की अध्यक्षता में ही आयोजित हुई जिसमें प्रतिवर्ष राष्ट्रवीर दुर्गादास राठौर की जयंती मनाने एवं उनकी प्रतिमा स्थापित करने का प्रस्ताव पारित हुआ। सन् 1980 में इन्होंने ”राठौर क्षत्रिय शोध संस्थान” की स्थापना प्रो. श्री रामगोपाल राठौर, कानपुर एवं डा.श्री देवीसिंह जी राठौर के प्रभार में की, जिसके सार्थक परिणाम रहे और सिघ्द हुआ कि, ’’राठौर क्षत्रिय वंशीय’’ हैं।
- श्री श्यामलाल राठौर- आप नांदेड, महाराष्ट्र से सम्बंधित रहे, आप के द्वारा राठौरों को संगठित किया गया और उनके उत्थान के लिये किये जा रहे प्रयासों में श्री दुलीचंद जी का सहयोग किया गया। आप के द्वारा राठौर क्षत्रिय जाति का संक्षिप्त इतिहास लिखा गया जिसमें राठौरों के सम्बंध में प्रमाणिक ऐतिहासिक शिलालेख, भाटों की बहियों एवं परवानों के आधार पर तथ्य प्रस्तुत किये गये हैं।
- श्रीमती कुँअर देवी राठौर- आप भी नांदेड, महाराष्ट्र से सम्बंधित रहीं। इनके द्वारा राठौर समाज को संगठित करने के साथ साथ श्री श्यामलाल जी राठौर के द्वारा राठौर क्षत्रिय जाति इतिहास को लिखने में तथ्यों को संकलित करने में सहयोग किया।
- श्री सत्यपाल राठौर- आप सन् 1963 से 1964 तक 1970 से 1978 तक महासभा के अध्यक्ष रहे। आप हिंगोली, महाराष्ट्र से थे| आपने नगर -नगर भ्रमण कर राठौरों को संगठित किया और विभिन्न प्रातों में महासभा की इकाईयाँ गठित करने में जीवन पर्यन्त प्रयासरत रहे। समाज के जरूरतमंदों को आर्थिक सहायता देते रहे।
- ठा.श्री अर्जुन सिंह राठौड- आप नटवाडा, टोंक, राजस्थान से सम्बंन्धित थे। इनका, नटवाडा, राजस्थान में वीर दुर्गादास संग्रहालय की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान है। विभिन्न प्रांतों में स्थापित होंने वाली वीर दुर्गादास की प्रतिमाओं के निर्माण में समाज को मार्गदर्शन दिया। ग्वालियर में वीर दुर्गादास की प्रतिमा की स्थापना में श्री बाबूलाल जमुनादास राठौर संरक्षक अ.भा.रा.क्ष.महासभा की संघर्षपूर्ण कामयाबी पर आपने दिनांक 4-2-10 को अपने एक खत में उन्हें लिखा कि- ”इस युग में जब तक दुर्गादास का नाम रहेगा आपका नाम भी आता रहेगा। आने वाली सदियाँ याद करती रहेगी। मनुष्य के अस्तित्व का नष्ट होंना स्वभाविक है। परन्तु कभी कभी कोई कोई सद्कर्म आने वाली सदियों में अमर हो जाते हैं। क्या दुर्गादास ने कभी सपने में सोचा था कि ग्वालियर में मेंरे वंश में कोई बाबूलाल जमुनादास पैदाहोकर मुझे अमर कर जायेगा, जिसने घोड़े की पीठ पर जिन्दगी गुजारी उसकी ग्वालियर में संघर्ष कर मूर्ति स्थापित हो जायेगी,”
- डा.श्री देवीसिंह राठौर– श्री दुलीचंद जी राठौर के निर्देशन में गठित ”राठौर क्षत्रिय शोध संस्थान” में राठौरों के इतिहास पर अनुसंधान किया।
- श्री मुन्नीलाल राठौर– महासभा को संगठित और सशक्त बनाने में इनका उल्लेखनीय योगदान है।
- प्रो. श्री आर.के.राठौर- आप कानपुर से थे, आप उ.प्र.के प्रथम महासभा प्रांतीय अध्यक्ष और ओजस्वी वक्ता थे। आप ”राठौर क्षत्रिय जाति का इतिहास” के लेखक थे। आप ’’राठौर क्षत्रिय शोध संस्थान’’ के प्रभारी भी रहे|
- श्री किशन सिंह राठौर– श्री किशन सिंह राठौर सागर म.प्र.,से थे, महासभा अध्यक्ष के रूप में इनकी सेंवाऐं सन् 1985 से, समाज को लगातार प्रेरित करती हैं। भारत सरकार द्वारा सन् 2003 में वीर दुर्गादास राठौर की स्मृति में आयोजित उनके चिन्हांकित स्मारक सिक्कों के लोकार्पण समारोह में आपने राठौरों का प्रतिनिधित्व किया । आपकी प्रेरणा से ही विभिन्न नगरों में वीर दुर्गादास की प्रतिमाओं की स्थापना हुई। सामुहिक विवाह और मृत्यभोज त्यागने का अभियान प्रारंम्भ हुआ। आपकोअखिल भारतीय राठौर क्षत्रिय महासभा के शताब्दी समारोह में ”शताब्दी पुरूष” के रूप में सम्मानित भी किया गया।
- श्री बाबूलाल जमुनादास राठौर- आप, अखिल भारतीय राठौर क्षत्रिय महासभा के संरक्षक रहे, म.प्र.शासन की सेवा में रहकर राठौरों के वैधानिक शासकीय कार्यों में सक्रिय सहयोग किया। मुरैना जिले के गाँव महचंदपुरा में मई 1974 में राठौरों की बारात में हाथी पर सवार दूल्हा को, हथियारों से लैस होकर रोकने वालों के साथ अपनी जान पर खेलकर संघर्ष किया और कार्यवाही कर मौके पर ही उन सभी 17 व्यक्तियों को गिरफ्तार करवाया और समाज के वैवाहिक रीति-रिवाज़ को सम्पन्न कराया। ग्वालियर दुर्ग पर स्थित पूर्व जातीय नाम से प्रसिघ्द ऐतिहासिक धरोहर को एक अन्य जाति विशेष द्वारा इतिहास बदलने के षड़यंत्र के समर्थन में स्थानीय राजनैतिक संगठनों के प्रदर्शन और स्थानीय मीडिया द्वारा समाज के वर्चस्व को नकारे जाने की चुनौतियों का डटकर मुकाबला किया और उन्हें परास्त कर मूल इतिहास को बचाये रखा। ग्वालियर में वीर दुर्गादास की प्रतिमा की स्थापना में अवरोध पैदा किये जाने पर शासन, प्रशासन और राजनैतिक दलों से टकराव लिया।अन्त में इन्हें सफलता प्राप्त हुई और शासन के व्यय पर ही ग्वालियर में प्रतिमा की स्थापना करवाई। इन्हानें जीवन पर्यन्त समाज के उत्थान के लिये ही कार्य किया |
- श्री गोपाल दास राठौर– आप जबलपुर से थे और अ.भा.रा.क्ष. महासभा के कोषाध्यक्ष रहे। इन्होंने महासभा के लिये जीवनभर कोष एकत्रित करने का कार्य किया।
- श्री हरप्रसाद राठौर- आप ललितपुर से थे। आप सन् 1975 में ललितपुर उ.प्र अ. भा. राठौर क्षत्रिय महासभा के सम्मेंलन के जनक रहे। आपने कई सामूहिक विवाह कार्यक्रम आयोजित कराऐ। सन् 2002 में अखिल भारतीय राठौर क्षत्रिय महासभा में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किये गये।
- श्री अशोक राठौर– आप ललितपुर से थे। आपने महासभा के मुख पत्र ”राठौर बंधु’’ के लिये कार्य किया।
- श्री धनलाल राठौर, सीहोर
- श्री प्रकाश राठौर, ग्वालियर
- श्री प्रभुदयाल राठौर, मुंगावली
- श्री नन्द लाल राठौर, सीहोर
- श्री बनवारी लाल, दिल्ली
- श्री फूलचंद राठौर, आष्टा
- श्रीमती यशोदा देवी राठौर, सागर
- श्री नारायण दास, रायपुर
- श्री भद्रसेन राठौर, हिंगोली
- श्री श्यामलाल, दिल्ली
- श्री मुंशी टेकराज सिंह, लखनऊ
- श्री महावीर प्रसाद, लखनऊ
- श्री राजधर, ललितपुर
- श्री शिव शंकर सिंह, कानपुर
- श्री राय साहब रामदास, ललितपुर
- श्री पुष्कर राज, इन्दौर
- श्री कन्छेदी लाल, ललितपुर
- श्री प्रताप सिंह, लखनऊ
- श्री नर्मदा प्रसाद, रायपुर
- श्री वंशीधर, मैनपुरी
- श्री देवकी नंदन, ललितपुर
- श्री मुकुन्द राठौर, रायपुर आदि।